rss
twitter
    Find out what I'm doing, Follow Me :)

Tuesday, January 17, 2012

खुम्ब में बनाएं शानदार भविष्य


खुम्ब में बनाएं शानदार भविष्य
मशरूम की खेती से होने वाले लाभ से उत्साहित होकर अब हर किसान व आम व्यक्ति इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। मशरूम अब कैरियर से जुडा सेक्टर माना जाने लगा है। इसका सामान्य प्रशिक्षण लेकर काफी पैसा कमाया जा सकता है।
भारत में मशरूम का व्यावसायिक उत्पादन बहुत तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। मशरूम एक प्रकार का फंगस (कवक) है। इसे खुम्ब के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक खाद्य पदार्थ है, लेकिन हर खुम्ब खाने योग्य नहीं होती और कुछ बहुत ही विषैली होती हैं। विश्व में दो हजार से ज्यादा किस्मों की मशरू म पाई जाती है, लेकिन इसमें करीब 25॰ प्रकार की मशरूम खाने योग्य होती है। अब तक सौ से ज्यादा मशरूम की प्रजातियों को खाद्य पदार्थ के रूप में अपनाया जा चुका है और इनमें से लगभग 35 की व्यावसायिक खेती दुनियाभर में की जा रही है। मुख्यरूप से उगाई जाने वाली मशरूम में सफेद बटन खुम्ब, शिटाके, ढोंगरी, ब्लैक ईयर मशरूम, धान पुआल खुम्ब और दूधिया मशरूम शामिल हैं। विश्व में हर साल लगभग 5॰ लाख टन खुम्ब का उत्पादन किया जाता है।

मशरूम पर शोध
दिल्ली के आसपास जैसे जीटी करनाल रोड के निकट अलीपुर ब्लॉक के कुछ गांवों में तो बडे पैमाने पर मशरूम की खेती की जा रही है। मशरूम की खेती न्यूनतम दो हजार रुपए से शुरू की जा सकती है। इसकी खेती की अपार संभावनाओं को देखते हुए सोलन स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर मशरूम विदेश में उगाई जाने वाली मशरू म पर काफ ी शोध कर रहा है, जिसमें संस्थान को विभिन्न प्रजातियां उगाने में सफलता भी हासिल हुई है।
मशरूम का उत्पादन
इसकी सबसे खास बात यह है कि उत्पादन बेकार बचे कृषि अवशेषों पर किया जाता है। इसकी खेती के लिए उपजाऊ भूमि और खेत और सूरज के प्रकाश की जरू रत नहीं पडती, इसलिए बंजर भूमि का उपयोग कर बेकार पडी खाली जमीन पर मशरूम की खेती कर लाभ कमाया जा सकता है। मशरूम की खेती मशरूम हाउस या हाट बनाकर भी की जा सकती है।
मशरूम की प्रजातियां
मशरूम की कुछ प्रजातियां तो महज पंद्रह से बीस दिनों में ही उगनी शुरू हो जाती हैं, जबकि कुछ प्रजातियों को उगने में ढाई महीने तक का समय लग जाता है। खुम्ब की खेती छोटे किसानों, बेरोजगारों और गृहणियों के लिए अजीविका का सबसे सशक्त साधन है। इसके उत्पादन के बाद बची कंपोस्ट का एक अति उत्तम ऑर्गेनिक खाद के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है और सबसे बडी बात मशरूम उत्पादकों के लिए निर्यात से लाभ कमाने की अपार संभावना है।
खेती भी आसान
उत्तर भारत के मैदानी भागों में सर्दी के महीनों में बटन खुम्ब और गर्मियों में धान पुआल खुम्ब की खेती आसानी से की जा सकती है। हमारे देश के उत्तरी भाग में सफेद बटन मशरूम सबसे अधिक उगाई जाने वाली मशरूम है। देश में हर साल लगभग 36 से 38 हजार टन सफेद बटन मशरूम का उत्पादन किया जाता है। इसकी मुख्य रूप से दो प्रजातियां-1. एगेरिकस बाइस्पोरस और 2. एगेरिकस बाइटोरक्विस हैं। इसकी खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम गेहूं अथवा धान का भूसा है, जिसकी उर्वरकता बढाने के लिए गन्ने का शीरा, घोडे की लीद, पॉल्ट्री मैन्योर, गेहूं की भूसी और विभिन्न रासायनिक खादें मिलाई जाती हैं। इन सब चीजों को मिलाकर भूसे को सडाया जाता है और उसकी कंपोस्ट बनाई जाती है। इसी कंपोस्ट से बटन मशरूम की खेती की जाती है।
यह खराब नहीं होता
सफेद बटन मशरूम की खेती दो प्रकार से की जाती है। पहला सीजनल और दूसरा नियंत्रित वातावरण में। सीजनल खेती के लिए उत्तरी भारत के मैदानी भाग में इसे उगाने का मौसम अक्टूबर से मार्च मध्य तक है। बटन मशरूम का उत्पादन वातावरण से बहुत प्रभावित होता है। इसके कवक जाल फैलने के लिए 22 से 26 सेंटीग्रेट तापमान पर इसके फलनकाय जल्द और ठोस बनते हैं। इससे कम तामपान पर इसकी बढने की क्षमता धीमी पड जाती है। बटन मशरूम की भंडारण अवधि बहुत कम होती है, इसलिए फसल के मौसम में ही इसका डिब्बाबंद संरक्षण कर लिया जाता है जिसे एक साल तक उपयोग में लाया जा सकता है।
खेती करें, धन कमाएं ज्यादा
नियंत्रित वातावरण में बटन मशरूम की खेती सालभर की जा सकती है। इस दौरान मशरूम की चार से पांच फसल आसानी से ली जा सकती है। मशरूम की सीजनल खेती में लागत कम होने की वजह से यह हमारे देश में अधिक लोकप्रिय है।

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...